मिशन बाँस परियोजना
पर्यावरण की अनदेखी करना एवं विकास के लिए अंधी दौड़ में आगे निकलने की चाहत अब सब के लिए किस कदर भारी पड़ रही है यह पीने के पानी की किल्लत के रूप में सामने आ रही है। जब पानी बोतलों में बिकना शुरू हुआ तो हमने खूब मजाक उड़ाया था आज तो आक्सीजन भी बोतलों में बिकने लगा है कल क्या होगा यह एक बहुत बड़ी सोच का विषय है एक बार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा।
इस बदलते परिवेश में दुनिया की वैश्विक जरूरतों को पूरा करने वाले उच्च गुणवत्ता वाले इंजीनियर बांस आधारित उत्पादों का निर्माण करना एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। बाँस स्थायी हरित अर्थव्यवस्था का निर्माण करके समाज और पर्यावरण की मदद कर सकता है| आर्टिजन एग्रो इन्डिया प्राइवेट लिमिटेड अपनी सहयोगी ईकाईयों तथा किसानों के साथ मिलकर उनकी बंजर जमीन पर राजस्थान में हर जिले में 20 लाख बांस पौधे लगवाने का काम कर रहा है
आर्टिजन का विजन
इस बदलते परीवेस में बांस टिम्बर की जगह ले सकता है , तथा पर्यावरण को भी संरक्षित कर सकता है बाँस मनुष्यों के जीवन को भी बदल सकता है। आर्टिजन एग्रो इन्डिया का मिशन विनिर्माण उच्च गुणवत्ता वाले बांस आधारित इंजीनियर बांस उत्पादों के लिए बम्बुसा बम्बोस को इमारती लकड़ी के रूप में स्थापित करना है। जिसका उद्देश्य व कथन मानव जीवन को छूने वाले कई इंजीनियर उत्पादों में बाँस के व्यापक उपयोग से पर्यावरण की रक्षा तथा परिवर्तन के लिए एक उत्प्रेरक बनाना है।
- अपने ग्राहकों के लिए प्रतिबद्धता:- प्रौद्योगिकी के माध्यम से नवाचार का उपयोग करके निरंतर सुधार के साथ अपने ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को लाने के लिए है।
- किसानों के लिए प्रतिबद्धता:- बांस उत्पादकों के लिए उचित मूल्य का भुगतान करना और बोनस के रूप में परिचालन लाभ का हिस्सा वितरण करना है।
- पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता:- FPO/FSC प्रमाणीकरण के साथ बाँस खेती को स्थायी वृक्षारोपण प्रथाओं को लागू करना आर्टिजन एग्रो इन्डिया का उद्देश्य है।
- सहयोगियों के प्रति प्रतिबद्धता:- ग्राहकों और सहयोगियों के लिए गुणवत्ता और सेवाओं में उत्कृष्ट कर्मचारी कल्याण और “व्यावसायिक नैतिकता” के उच्च स्तर को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास करना मुख्य उद्देश्य होगा।
- समृद्धि के लिए प्रतिबद्धता:- देश में बांस इंजीनियर उत्पादों के क्षेत्र में आर्टिजन पहला प्रस्तावक वैश्विक कदम उठाने वाला खिलाड़ी बनने जा रहा है ।
बम्बूसा बम्बोस ही क्यों ?
नवीकरणीय संसाधन:– बंबूसा बम्बोस बाँस का पेड़ सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ता है, 70 से 90 फिट बढने में केवल चार (4) वर्ष लगते हैं, इसके बाद हर साल उपज प्रदान करते हैं|
स्थायी ग्रीन का निर्माण:– इस चक्रीय फसल प्रक्रिया के कारण केवल बांस रोपण के माध्यम से स्थायी ग्रीन का निर्माण तथा पर्यावरण का बचाव संभव हो सकता है।
कोई अनुमति नहीं चाहिए:- बंबूसा बम्बोस को “नकदी फसल” के रूप में ऑन–फील्ड लगाया जाता है, बांस की फसल और परिवहन के लिए आवश्यक वन विभाग से कोई अनुमति नहीं। कमर्शियल इंप्लिमेंटेशन:– बंबूसा बम्बोस बाँस लकड़ी के लिए एक बहुत अच्छा प्रतिस्थापन तथा बेहतर गुणवत्ता और सस्ता विकल्प प्रदान कर सकता है।
पर्यावरणपर बाँस का प्रभाव:– बाँस किसी भी अन्य संयंत्र की तुलना में 32% अधिक CO2 अवशोषित करता है जो ग्रीन–हाउस गैस उत्सर्जन की पर्यावरणीय चुनौती को जवाब देता है।
सामाजिक राजनीतिक प्रभाव:- बांस वृक्षारोपण हमारी इस दुनिया को बदलने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में से 6 लक्ष्यों को संबोधित करता है।
किसान आय में हो सकती है वृद्धि:- बाँस का पेड़ एक बहुत ही महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एजेंडे को संबोधित करता है। बांस के इंजीनियर प्रोड्क्ट उत्पाद के लिए बाँस की कच्चे माल के रूप में तुलना होतीं है बांस के भौतिक गुणों को विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है इसलिए बांस से बने इंजीनियर प्रोड्क्ट की ताकत गुण बांस से बहुत अच्छे होते है। बांस की तुलना में लकड़ी के भौतिक गुणों को बढ़ाना आसान नहीं है।
बाँस की कार्य क्षमता:– एक जैसी बांस प्रजातियों के कारण बांस के इंजीनियर प्रोड्क्ट उत्पाद बनाने की प्रक्रिया में हमेशा एक रूपता ही बनी रहती है।
बाँस नमी प्रतिरोधक है:– जैसा आप जानते हैं कि यह एक घास है, बांस दृढ़ लकड़ी की तुलना में नमी की क्षति के लिए थोड़ा अधिक प्रतिरोधी है। इसके अलावा, बांस स्वाभाविक रूप से मोल्ड को पीछे छोड़ता है, और फफूंदी को रोकने में एक शत्रुतापूर्ण वातावरण के रूप में कार्य करता है जो फफूंदी के बढ़ने की क्षमता को सीमित कर सकता है।
बाँस की कठोरता से तुलना:– हार्डवुड की तुलना में गुणवत्ता वाला बांस कठिन होता है। प्राकृतिक बांस की कठोरता सिल्वर मेपल (700), रेड मेपल (950), हार्ड मेपल / चीनी मेपल (1450) की तुलना में 1300 और 1380 (जंका टेस्ट) के बीच हो सकती है। विनिर्माण विधियां बांस की कठोरता को दोगुना से तिनगुना तक कर सकती हैं।
बाँस में जल लवणता का प्रभाव:– अपने नमक सहनशीलता के कारण, बंबूसा बम्बोस, किसी भी मिट्टी के लिए एक अच्छी फसल हो सकती है जहां लवणता का स्तर अधिक होता है। जहाँ पारंपरिक फसलें खारे पानी में नहीं बच सकती थीं, बम्बुसा बम्बोस 100 मिमी तक की लवणता वाले खारे पानी में भी आसानी से बच सकते हैं। तुलना के लिए विशिष्ट समुद्री जल की लवणता 600 मिमी (3.5% या 35 ग्राम / लीटर) है। इसलिए इसे तटीय क्षेत्र या खारे पानी के क्षेत्र जैसे कुन्हा के रण में लगाया जा सकता है।
बांस की खेती एक नकदी फसल है:– इमारती लकड़ी के रूप में बांस की स्थापना करने के लिए आर्टिजन एग्रो इन्डिया किसानों को बंबूसा बम्बोस, (कटिंगा) बांस की पौध प्रदान करता है और चार वर्ष पुराने वृक्षारोपण के साथ खरीद-बिक्री अनुबंध पर 40 साल के लिए हस्ताक्षर करता है।
किसान की समस्या का होगा समाधान:- किसान भाई खाली पड़ी कम पानी वाली एक एकड़ जमीन पर 600 बाँस पेड़ लगा सकते हैं| बाँस की खेती से अपेक्षित सकल आय लगभग 7 से 8 लाख प्रति एकड़ हो सकती है। जो कोई भी सामान्य फसल इस तरह के रिटर्न से मेल नहीं खा सकती है।
लाखों लोगों को मिलेगा रोजगार:- आर्टिजन एग्रो इन्डिया अपनी सहयोगी ईकाईयों के साथ मिलकर “OLA“ “OYO’’ जैसा मॉडल अपनाकर सामूहिक बांस उद्योग के अंतर्गत SHG/FPO बनवाकर बांस आधारित विभिन्न प्रकार के इंजीनियर प्रोड्क्ट का उत्पादन करने जा रहा है। बांस आधारित अगरबत्ती स्टिक, चारकोल, पेपर/पेपर पल्प , एथानोल, CNG, मुरब्बा आदि का व्यावसायिक रूप से उत्पादन हो सकता है जिससे देश के लाखों ग्रामीण युवाओ का भविष्य बन सकता है|
बांस की नर्सरी:- आर्टिजन एग्रो इन्डिया किसानों को बीज आधारित बंबूसा बम्बोस तथा राइजोम आधारित बंबूसा बालकुवा बाँस की स्वस्थ रोपण सामग्री के लिए सहायता प्रदानं करता है जिससे नर्सरी में स्थायी किशोर बांस पौधे बनते है। आर्टिजन एग्रो इन्डिया किसानों के नजदीक अपनी सहयोगी ईकाईयों के साथ मिलकर हर तहसील में सप्लाई नर्सरी तथा हर पंचायत में एक किसान मित्र सेंटर की स्थापना कर रहा है |
बाँस पोधों की गुणवत्ता:- किसानों को 1.5 फिट से 2 फिट के किशोर बाँस पोधे मिलते हैं, जिसके परिणामस्वरूप न्यूनतम मृत्यु दर होती है।
बाँस वृक्षारोपण का मॉडल:- लाइन से लाइन 12 फिट तथा पेड़ से पेड़ 5 फिट दूरी रखने से प्रति एकड़ 600 बाँस पौधे लगाए जा सकते हैं पौधे लगाने के लिए वैकल्पिक रूप से पंक्ति के साथ कम से कम 1 फीट गहराई पर निरंतर खाई बनाएं। इस खाई में 1 फीट गहराई पर पौधे लगाने चाहिए| जो मिट्टी बहुत कठोर होती है और इससे पहले कोई खेती नहीं की जाती है। रोपण से कुछ दिन पहले, पूरी तरह से मिश्रित मिट्टी और खाद के साथ गड्ढे में भरना चाहिए। ढीली मिट्टी या उस खेत में जहाँ पहले खेती की जाती है, केवल खाई बनवाकर बाँस पौधे लगवाए जा सकते है| यदि जगह दीमक के रूप है तो 1 किलो तक नीम केक मिलाएं।
बाँस खेती में सिंचाई:- बाँस रोपण के तुरंत बाद 10 से 15 लीटर पानी के साथ सिंचाई की आवश्यकता होती है। फर्टिगेशन टैंक के साथ ड्रिप इरिगेशन उन अच्छी सिंचाई प्रणालियों में से एक है जिसकी हम सलाह देते हैं। रोपण के बाद सिंचाई मिट्टी की स्थिति और प्रचलित जलवायु स्थिति पर निर्भर करती है। पहले महीने के लिए बांस को पानी की आवश्यकता 2 से 3 लीटर प्रति पौधा होगी, पहले साल के अंत में यह बढ़कर 8 से 10 पौधा हो जाता है। जब पौधे पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं तो पानी की आवश्यकता चरम गर्मियों के दौरान प्रति पौधे 20 लीटर होगी।
गड्ढे का ढीलाकरण:- बांस की फसल अधिक लेने के लिए गड्ढे को वर्ष में कम से कम दो बार बांस की झुरमुट से 10 -15 सेमी, और 30-45 सेमी की गहराई तक ढीला होना चाहिए ताकि शूट की वृद्धि और जड़ प्रणाली में सुधार हो सके।बारिश से पहले बांस की पंक्तियों के बीच ट्रैक्टर के साथ जुताई करना बारिश के पानी को बेहतर तरीके से अवशोषित करेगा।
बाँस खेती में निराई:- जुताई के लिए युवा / किशोर बांस के पौधों के साथ प्रतिस्पर्धा करने से खरपतवार और अन्य वनस्पतियों को रोकने के लिए पौधे के आस-पास नियमित निराई करना अति आवश्यक है।
भारत सरकार साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के मकसद से तमाम कोशिशें कर रही है. इसके लिए राष्ट्रीय बाँस मिशन’ के तहत बांस की विभिन्न प्रजातियों की पूरे भारत में खेती को बढ़ावा देने की तैयारी कर रही है | भारत के विभिन्न राज्यों में इसका परीक्षण कराया था और लगभग सभी जगहों पर इसका परीक्षण सफल भी रहा है |लेकिन वाणिज्यिक स्तर पर इसकी खेती कराने पर अभी तक अधिक ध्यान नहीं दिया गया था |आज बाँस खेती के लिए किसानों को आगे आने की पहल करनी होगी इससे किसान आमदनी बढ़ेगी तथा देश के लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा |