राष्ट्रीय किसान समृद्धि परियोजना

किसान समृद्धि परियोजना में आपका स्वागत है

बाँस उद्योग में करोड़ो लोंगों को मिल सकता है रोजगार

बांस उद्योग में रोजगार पैदा करने तथा चीन को टक्कर देने के लिये सरकार ने बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए नैशनल हाइवे के किनारे बांस लगाने का खाका तैयार किया गया है।
अब युवाओं को बांस के कारोबार से जोड़ा जाएगा ताकि युवाओं के लिए रोजगार का रास्ता खुल सके। इन्हीं संभावनाओं को देखते हुए इंडियन फारेस्ट एक्ट में संशोधन करते हुए 100 साल पुराने अंग्रेजों के जमाने के कानून को खत्म किया गया है। पहले बांस को काटने के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती थी, भले ही बांस आपने घर-आंगन में हीं क्यों न उगाए हों।
मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने 25-04-2018 को अनुमोदित राष्ट्रीय बांस मिशन क्षेत्र आधारित, क्षेत्रीय रूप से विभेदित रणनीति को अपनाकर बांस क्षेत्र के समग्र विकास को बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है। मिशन के तहत, नई नर्सरियों की स्थापना और मौजूदा लोगों को मजबूत बनाने के लिए गुणवत्ता रोपण सामग्री की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कदम उठाए गए हैं।
नीति आयोग के तहत बांस से संबद्ध एक उप समूह गठित किया जा सकता है, बांस उद्योगग्रामीण इलाकों में लाखों लोगों को रोजगार दे सकता है। गडकरी ने हाल ही में बांस उद्योग पर एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की जिसमें प्रकाश जावडेकर, स्मृति ईरानी, राधामोहन सिंह सहित कई प्रमुख मंत्री शामिल हुए। मंत्री ने कहा कि बांस का घरेलू बाजार करीब 15 अरब डॉलर का है। उन्होंने कहा कि बांस की खेती से बड़ी तादाद में रोजगार मिलता है, यह सिक्के का एक पहलू है, जबकि दूसरा पहलू प्रदूषण के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए लंबे समय में यह ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत बन सकता है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का मानना है कि बांस एक बड़ा आर्थिक बदलाव लाने वाला साबित हो सकता है, इसलिए उन्होंने इसकी संभावनाओं का दोहन करने के लिए कई बड़ी योजनाएं बना रखी हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमें जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बांस का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है। बांस की खेती से रोजगार बढ़ेंगे और गांवों से शहरों की ओर हो रहे पलायन को रोकने में भी मदद मिलेगी।’ उन्हों’ने यह भी कहा कि बांस से बनने वाला एथेनॉल कच्चे तेल के आयात पर हो रहे भारी-भरकम सरकारी खर्च को घटा सकता है।
केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक समारोह में कहा, किभारत में 130 लाख हेक्टेयर में बांस की खेती की जा रही है, जबकि चीन में इसकी एक-तिहाई यानी 42 लाख हेक्टेयर में बांस की खेती की जा रही है। इसके बावजूद चीन की वार्षिक बांस उत्पादकता 45 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि भारत हर साल प्रति हेक्टेयर दो से तीन टन बांस ही पैदा कर पाता है। ‘हमें बांस का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है।केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘हमें जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बांस का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है। बांस की खेती से रोजगार बढ़ेंगे और गांवों से शहरों की ओर हो रहे पलायन को रोकने में भी मदद मिलेगी।’ उन्हों ने यह भी कहा कि बांस से बनने वाला एथेनॉल कच्चे तेल के आयात पर हो रहे भारी-भरकम सरकारी खर्च को घटा सकता है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘फिलहाल हम पेट्रोल में पांच प्रतिशत एथेनॉल मिला रहे हैं। हमारी सरकार चाहती है कि इसे बढ़ाकर 22.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचाया जाए। लिहाजा हमें एथेनॉल का उत्पादन कम से कम 10 गुना बढ़ाना होगा। बांस की खेती से एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने में खासी मदद मिल सकती है।
गडकरी ने बताया कि देश में नैशनल हाइवे की लंबाई फिलहाल 96,000 किलोमीटर है, जिसे बढ़ाकर दो लाख किलोमीटर करने की योजना है। उन्हों ने कहा, ‘हम हाइवे के किनारे बांस और अन्य प्रजातियों के पौधे रोपेंगे। जिससे किसानों को नई नर्सरियों की स्थापना का अवसर मिलेगा I किसान भाई बाँस की खेती के साथ बाँस की पौध तैयार करके अपनी आमदनी को पांच गुणा तक बढ़ा सकते हैं I

खेती से पहले जानें बांस की किस्में

भारत में जलवायू के हिसाब से लगभग 136 किस्में पाई जाती हैं इनमें से बम्बुसा की लगभग 16 किस्में व्यवसायिक मानी गई हैं नीचे कुछ खास किस्में दी गई है।

बम्बुसा बम्बू:- यह नीचे मोटा उपर पतला व ठोस होता है।इसको बीमा बम्बु भी कहा जाता है। यह पेपर बायोमास तथा एथोनिल जैसे पदार्थ बनाने में उपयुक्त होता है वजन ज्यादा होने के कारण अधिकतर किसान इसे लगाना पसन्द करते है।

बम्बुसा बालकुआः- यह कटिंगा का ही एक रूप होता है नीचे मोटा उपर पतला व ठोस होता है। यह प्लाइवुड,वुडन फलौरिंग,पेपर बायोमास तथा एथोनिल जैसे अन्य पदार्थ बनाने में उपयुक्त होता हैवजन ज्यादा होने के कारण किसान इसे लगाना चाहते है।

बम्बुसा टुल्डाः- यह लम्बी पोरी वाला नीचे से उपर तक एक जैसा ही होता है। इस किस्म के बांस को फरनीचर पानी की बोतले सजावटी लाइटे,स्टीक, आदि के निर्माण में बहुत ही उपयुक्त माना जाता है। इसकी लम्बाई 70 फिट से अधिक हो सकती है। घर, आंगन, स्कूल,कालेज, तथा पिकनिक गार्डन मे इस बांस को ही लगाते हैं।

बांस खेती से किसान की आय हो सकती है पांच गुना

  1. भारतीय संस्कृति में बांस का मानवीय सभ्यता के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है।
  2. भारतीय संस्कृति के हर पहलू में बांस को बहुत ही षुभ माना जाता है।
  3. भारतीय संस्कृति में कहते हैं कि जिस घर में बांस उसी घर में लक्ष्मी का वास।
  4. बांस की कोंपलों का अचार मुरब्बा सब्जी खाने से हर रोग दूर हो जाते हैं।
  5. बांस के पेडों के पास हर दिन कुछ समय बिताऐं सभी रोगों से मुक्ति पाऐं।

बांस की अनेको विषेषताऐं हैं जैसे

  1. बांस की खेती भारत में कही भी कम पानी, बंजर जमीन पर भी लगायी जा सकती है।
  2. खेत में एक बार 500 बांस लगाने पर 1 लाख मासिक आमदनी जीवनभर होती रहती है।
  3. बांस के एक पौधे से एक साल में 25 पेड 15 फिट 4 साल में 70 फिट उॅंचे हो जाते है।
  4. किसान भाई 2साल तक बांस के साथ कोइ भी खेती कर सकते है। 2 साल बाद बांस के साथ काली हल्दी, अदरक जैसी आयुर्वेदिक खेती करके करोडों रूपऐ कमा सकते हैं।
  5. बांस के 500 पेड से 4 साल बाद 5000 बांस हर साल बेच सकते हैं। बांस खेती के साथ बांस की नई पौध तैयार करके लिखित करार के साथ लाखो रूपऐ मासिक कमा सकते हैं।
  6. बांस के बहुउपयोग को देखते हुए इसे वनो का हरा सोना भी कहा जाता है।
    बांस द्वारा विभिन प्रकार का सामान बनाने में लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है।

बांस खेती लागत और लाभ” विश्लेषण।

बाँस एक सदा बहार फूल वाला पौधा है जो घास परिवार से संबंधित है। बाँस को दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला पौधा माना जाता है। यह देखा गया है कि बांस की कुछ प्रजातियां एक दिन में लगभग 90 सेमी तक बढ़ सकती हैं। एक वैज्ञानिक सवाल दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के क्षेत्रों में आर्थिक महत्व का है। बांस को भौगोलिक विभाजन के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, जहां यह नई दुनिया के अस्तित्व में उष्ण कटिबंधीय लकड़ी और समशीतोष्ण वुडी रूप में माना जाता है कि दुनिया भर में बांस की 1400 से अधिक प्रजातियां हैं। यह पौधा उष्ण कटिबंधीय और समशीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों का मूल निवासी है, लेकिन कभी-कभी बांस की कुछ प्रजातियां ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं। बाँस के पौधों में प्राकृतिक उत्थान क्षमता होती है और ये अधिकतर वन क्षेत्रों में पाए जाते हैं। बांस का पौधा 35% अधिक ऑक्सीजन जारी करके और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को कम करके जंगलों को संरक्षित करने में मदद करता है।

21वी सदी की सबसे बडी बाँस परियोजना

!! किसान समृद्धि योजना अब हर खेत में उगेगा हरा सोना !!

किसान समृद्धि परियोजना हर गाँव में किसान की खाली पड़ी उबड खाबड़ कम पानी तथा बन्जर जमीन का सही उपयोग करने के लिए बनाई गई है जिस जमीन का वें कभी इस्तेमाल ही नही करते हैं अर्टिसन एग्रो इन्डिया देश के सभी किसानों को बाँस खेती से समृद्ध बनाने का अभियान शुरू कर रही है किसान भाई अपनी उबड खाबड, कम पानी, बंजर भूमी पर 500 बांस पेड लगाकर बिना किसी मेहनत के 50 साल तक सालाना 7 से 8 लाख प्रति एकड आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।निशुल्क मार्गदर्शन खरीदने का पक्का लिखित करार करके बांस के साथ अदरक काली हल्दी, सफेद मूसली, आदि की खेती करके अपनी आमदनी को 5 गुणा तक बढाऐं।

पर्यावरण सुरक्षा परियोजना            लागत एक बार                   मुनाफा हर साल

             500 बाँस के पेड़ लगवाएँ                 25,000/-             5,00,000/- तक सालाना
          2000 बाँस के पेड़ लगवाएँ             1,00,000/-          20,00,000/- तक सालाना

नई तकनीक अपनाकर कम लागत में बाँस की अधिक फसल ले सकते हैं

किसान भाइयों अपनी उबड खाबड, कम पानी, बंजर जमीन को खाली मत छोड़ो, अपनी जमीन मे बाँस खेती करके हरा सोना उगाए लाखोँ रुपये मासिक कमाऐ I

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें बाँस-खेती-रिपोर्ट बाँस खेती रिपोर्ट……